उड़ी में आतंकवादी हमले के पश्चात सभी भारतीय ताकते बैठे थे कि भारत में रह कर, भारतीय फिल्मों में काम कर के, भारतीयों से मान-सम्मान और मोटा माल कमाने वाले पाकितान से आये कलाकार कब आतंकवाद के विरोध में कुछ फूटेंगे। इस अवधि में अच्छी-खासी वैचारिक धक्कम- धक्की हुई। जहाँ पाकिस्तानी कलाकारों की चुप्पी के कारण भारतीय जनता सुलग रही थी, वही भारत का तथाकथित ‘बुद्धिजीवी’ वर्ग इस सुलगे हुए वर्ग को ये समझाने में लगा हुआ था कि पाकिस्तानी कलाकार केवल कलाकार हैं, आतंकवादी नहीं — जैसे जनता को ये पता ही नहीं था। मानो , बुद्धिजीवियों ने धीमी आंच वाले कोयलों पर सीधा पेट्रोल का छिड़काव कर दिया। फिर हुआ वही जो होना था — जहाँ पाए गए, तहाँ ...... दिए गए तबियत से! कोई मीता वशिष्ठ और ओम पुरी जी से पूछे!
अब इतना सब रामायण-महाभारत होने के बाद पहले फवाद खान ने फेसबुक पर एक ‘शांति सन्देश’ चिपका दिया। आतंकवाद की पुंगी बजाना तो छोड़िये, नाम तक ना लिया उसका। मने, भिया, ऐसा ही करना था तो काहे पोस्टियाए? खैर, आपका फेसबुक पेज… आप चाहे जो छाप दो!
अब माहिरा खान ने फेसबुक पर पोस्ट चेपा है। भगवान्-जीजस-अल्लाह ताला(मने ऊपर वाले के जितने नाम हैं सब को यहाँ उड़ेल लो… हम सेक्युलर हैं!) का लाख-लाख धन्यवाद — कन्या ने इतना साहस और बुद्धि दिखाई कि आतंकवाद को गरिया दिया। उनके पोस्ट के हिंदी अनुवाद पर ध्यान दे —
“एक अभिनेत्री के रूप में कार्यरत पिछले ५ वर्षों की कालावधि में, मुझे विश्वास है कि मैंने प्रोफेशनल रहकर और अपनी क्षमताओं के द्वारा पाकिस्तान का प्रतिनिधित्व कर के सदा अपने देश की गरिमा बनाए रखी।एक पाकिस्तानी और एक वैश्विक-नागरिक होने के नाते मैं आतंकवाद और खून-खराबे की कड़ी निंदा करती हूँ, चाहे वो किसी भी जगह हो। मुझे खून-खराबे और युद्ध में कोई रूचि नहीं। मैं सदा ऐसे विश्व की आशा करती हूँ जहाँ मेरी संतान इनसे बची रह सके; और सभी से ऐसे विश्व की कामना करने का अनुरोध करती हूँ।इसी थोड़ी सी कालावधि में समझदारी और भलाई में मेरा विश्वास प्रगाढ़ हुआ है। आपके संदेशों और समर्थन के लिए धन्यवाद।सदा शांति की कामना और प्रार्थना करते हुए— माहिरा खान”
अब तक जहाँ लोग ये पूछते रहे कि पाकिस्तानी कलाकार आतंकवाद को गरिया क्यों नहीं रहे, अब दूसरे प्रश्न पर मस्तिष्क का चरखा चला रहे हैं — इस निंदा वाली औपचारिकता/फॉर्मेलिटी के लिए इतना समय क्यों लग गया? अब तक इन्होंने चुप्पी क्यों साध रखी थी?
जब तक ये ‘कलाकार’ मुँह में दही जमाए बैठे थे, तब तक ‘बुद्धिजीवी’ ये तर्क ठेल रहे थे कि अपनी ही सरकार के विरुद्ध कोई बयान देना इन कलाकारों के लिए कठिन कार्य होगा। तो हे महानुभावों, इस तर्क के अनुसार आप कह रहे हैं कि ये लोग जानते-मानते हैं कि इन आतंकी गतिविधियों के पाकिस्तानी सरकार की ही कारगुजारियाँ हैं? यदि ये मान लिया जाए तो इनकी चुप्पी तो और अधिक ‘नमकहरामी’ वाली बात हो जाएगी! भारत में कमा-खा कर भारत पर हुए अत्याचारों पर चुप रहना!
अब आखिरकार इन दो कलाकारों ने कुछ बोला। माहिरा ने संतोष-जनक कुछ कहा, फवाद ने तो… खैर छोडिये। पर अब वही दूसरा प्रश्न मस्तिष्क में चक्करघिन्नी हो रहा है — इतना समय क्यों लग गया? क्या फिल्मों के बहिष्कार के नारों से नींद उड़ी है अब इनकी? नहीं, मल्लब, एक फेसबुक पोस्ट चिपकाने में इतना समय लग गया? अब बचने के लिए केवल ये बहाना बनाया जा सकता है कि इनके यहाँ इन्टरनेट नहीं चल रहा था। बाकी, जनता सयानी है ही… पब्लिक सब जानती है!
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